रायपुर। यह तो होना ही था। इसका अंदेशा भले ही पत्रकार राजकुमार सोनी को नहीं रहा होगा, लेकिन उनकी लेखनी को जानने-समझने और उन्हें पढ़ने-लिखने वालों को इस बात का अंदेशा अवश्य था कि चुनाव से ठीक पहले उन्हें हटाने के लिए ऐन-केन-प्रकारेण हथकंडो का इस्तेमाल अवश्य होगा। चुनाव से ठीक पहले ऐसा हथकंडा कौन लोग इस्तेमाल कर सकते हैं यह समझना ज्यादा कठिन भी नहीं है। सोनी के साथ ऐसा वर्ष 2013 के चुनाव से पहले भी हो चुका है जब वे तहलका के लिए खबरें लिखते थे।
आखिरकार व्यवस्था एक पत्रकार को राज्य से बेदखल करने के अपने मकसद पर कामयाब हो ही गई। यह खबर सौ फीसदी सच है कि पत्रिका के वरिष्ठ पत्रकार राजकुमार सोनी का तबादला कोयम्बटूर कर दिया गया है।
आश्चर्य इस बात पर हो रहा है कि पत्रिका जैसा अखबार जिसके बारे में यह मशहूर है वह बेबाकी और धारदार तरीके से लिखने-पढ़ने वालों को सम्मान देता है, वहां ऐसी शर्मनाक सिचुएशन बन गई है? नाम न लिखने की शर्त पर पत्रिका के कई पत्रकारों ने कहा कि छत्तीसगढ़ में जब तक गिरिराज शर्मा पत्रिका के संपादक थे तब तक स्थितियां बेहद अच्छी थी। उनके हटने के साथ ही स्थितियां बदलती चली गई। इधर खबर है कि चंद दिनों में कुछेक अन्य संस्थानों के पत्रकार भी इधर से उधर किए जाएंगे। चुनाव के समय ऐसा क्यों होगा यह आसानी से समझा जा सकता है।
बहरहाल सोनी को राज्य से बेदखल करने से यह साफ है कि इस बार मौजूदा तंत्र हर छोटे से छोटे बिंदु पर काम करके चल रहा है। साथ इस घटना ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं-
1. वह कौन हैं जो असहमति का कोई भी स्वर अपने यहां नहीं रहने देना चाहता?
2. क्या मौजूदा तंत्र यह मान बैठा है कि असहमति प्रकट करने वाले अपराधी होते हैं?
3. क्या कुछ लोग यह मान रहे हैं कि छत्तीसगढ़ में राजकुमार सोनी जैसे पत्रकार रहेंगे तो चुनाव में दिक्कत पैदा होगी?
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