रायपुर। ब्यास मुनि द्विवेदी। राजनीति भी बड़ी अजीब चीज है जिसको कहते है कि समझ से परे है। राजनीति में चली गई चाल अगर जल्दी समझ मे आ जाये तो फिर क्या कहना!!! लेकिन कई बार चाल चलने वाले को भी नही पता होता कि वह खुद करना क्या चाह रहा है। छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री और राजनीतिक तौर पर माहिर माने जाने वाले अजीत जोगी के फैसलों से विपक्षी तो ठीक है उनके साथ वाले भी भ्रमित है कि अजीत जोगी करना क्या चाह रहे हैं?
अगर मीडिया की खबरों को सच माने और जोगी जी की बहू ऋचा जोगी बसपा के टिकट से चुनाव लड़ने वाली हैं और ऐसा होता है तो अजीत जोगी का खुद की पार्टी बनाने का मकशद क्या था?
जोगी जी के परिवार में कुल चार लोग है। खुद अजीत जोगी, पत्नी डॉ रेणु जोगी, पुत्र अमित जोगी और पुत्रवधु ऋचा जोगी। वर्तमान में तीन छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस और पत्नी डॉ रेणु जोगी कांग्रेस में है। फिलहाल दो पार्टियों में परिवार बटा हुआ है, जोगी जी कहते भी है पत्नी को मनाना मुश्किल है। मनना मुश्किल है या सोची समझी रणनीति? हालांकि देश मे ऐसे कई परिवार है जो दो पार्टियों में है। इसमें कोई बड़ी बात नही है।
अब जो नई हवा चल रही है बहु ऋचा जोगी की बहुजन में जाकर चुनाव लड़ने की वो बड़ी हास्यास्पद है। वैसे जोगी जी ऐसा नही करेंगे लेकिन अगर ऐसा हुआ तो कार्यकर्ता ठगा सा महसूस करेगा कि जब जोगी जी को खुद अपनी पार्टी पर भरोसा नही है तो कार्यकर्ता का क्या होगा? जिनके दम पर वो दूसरी पार्टियां छोड़ कर आये थे वो खुद दूसरी पार्टियों से चुनाव लड़ रहे हैं? पार्टी के दो कार्यकर्ता बात कर रहे थे एक ने कहा जब सब को बहुजन से ही लड़ना था तो पार्टी बनाने की क्या जरूरत थी? सब बहुजन में ही चले जाते तो ज्यादा सीट मिल जाती, गठबंधन से तो अच्छा ही साबित होता। दूसरे ने कहा अब जोगी परिवार तीन पार्टी में बट जाएगा, सत्ता में जो भी आये सभी मे एक आदमी अपना होगा। दूसरे ने तपाक से कहा तो अभी एक बाकी है भाजपा भी जॉइन कर लेते! ज्यादा रायता फैलाने के चक्कर मे सबकी लुटिया न डूब जाए।
राजनीति है सब समय बताएगा लेकिन लेकिन हिंदी के मुहावरे भी सटीक कहा बैठाए मुश्किल हो जाता है। दो नाव में पैर रखने की कहावत तो ठीक थी अब तीन नाव में पैर कैसे फिट किया जाता है ये भी राजनीति में दिखता है, लेकिन हिंदी में तीन के लिए कोई मुहावरा बना नही तो एक मित्र की बात याद आ गयी अजीत जोगी और मेरी मुर्गी के तीन टांग…
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